एक समय की बात है, एक घने जंगल में एक तेज़ दौड़ने वाला खरगोश और एक धीमा कछुआ रहते थे। खरगोश बहुत घमंडी था और अक्सर अपनी तेज़ दौड़ने की क्षमता पर गर्व करता था। वह हमेशा कछुए का मज़ाक उड़ाता और कहता, “तुम बहुत धीरे-धीरे चलते हो, तुम्हें कहीं भी पहुँचने में घंटों लग जाएंगे!”
एक दिन कछुआ खरगोश की बातें सुनकर मुस्कराया और बोला, “अगर तुम इतने ही तेज़ हो, तो मेरे साथ दौड़ की प्रतियोगिता करो। देखते हैं कौन जीतता है।”
खरगोश ने हंसते हुए तुरंत चुनौती स्वीकार कर ली। उसे पूरा यकीन था कि वह कछुए को आसानी से हरा देगा। अगले दिन दौड़ शुरू हुई। जंगल के सभी जानवर देखने के लिए इकट्ठा हुए।
दौड़ शुरू होते ही खरगोश बहुत तेज़ दौड़ने लगा और जल्द ही कछुए से बहुत आगे निकल गया। रास्ते में उसे लगा कि कछुआ तो बहुत धीमा है, वह तो अभी दूर पीछे है। इसलिए उसने एक पेड़ के नीचे आराम करने का सोचा और वहीं लेटकर सो गया।
कछुआ धीरे-धीरे, लेकिन लगातार चलता रहा। उसने रुकने का नाम नहीं लिया। जब वह खरगोश के पास पहुँचा, तो देखा कि खरगोश सो रहा है। कछुआ बिना रुके आगे बढ़ता रहा।
थोड़ी देर बाद खरगोश की नींद खुली और उसने देखा कि कछुआ लगभग जीतने के करीब है। उसने तेजी से दौड़ने की कोशिश की, लेकिन तब तक कछुआ फिनिश लाइन पार कर चुका था और सभी जानवर तालियाँ बजा रहे थे।
खरगोश को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने कछुए से माफी मांगी और कहा, “मैंने अपनी तेज़ी पर घमंड किया, लेकिन तुम्हारी मेहनत और निरंतरता ने तुम्हें विजेता बना दिया।”
कछुआ मुस्कराते हुए बोला, “धीरे-धीरे ही सही, लेकिन लगातार चलते रहने से हम अपनी मंजिल तक पहुँच सकते हैं।”
और इस तरह, खरगोश ने सीखा कि केवल तेज़ दौड़ना ही सब कुछ नहीं होता, बल्कि मेहनत, धैर्य और निरंतरता से भी सफलता मिलती है।
सीख: घमंड से कुछ हासिल नहीं होता, बल्कि निरंतरता और धैर्य से ही हम अपनी मंजिल तक पहुँचते हैं।