Hindi story for Kids-2: चतुर खरगोश और धैर्यवान कछुआ
एक घने और हरे-भरे जंगल में, बहुत सारे जानवर रहते थे। उनमें से दो जानवर सबसे अलग और दिलचस्प थे – एक तेज़ दौड़ने वाला खरगोश और एक धीमा लेकिन धैर्यवान कछुआ। खरगोश का नाम ‘चतुर’ था, और कछुआ ‘धीरज’ के नाम से जाना जाता था। चतुर बहुत ही तेज़ दौड़ सकता था और अक्सर अपनी तेज़ गति पर घमंड करता था। वह हमेशा बाकी जानवरों से कहता, “इस पूरे जंगल में कोई भी मुझसे तेज़ नहीं दौड़ सकता। मैं सबसे तेज़ हूँ!”
धीरज, जो कछुआ था, हमेशा शांत रहता था। वह किसी की बातों पर ध्यान नहीं देता था और हमेशा अपने काम में जुटा रहता था। वह जानता था कि तेज़ी से दौड़ने से ज़्यादा महत्वपूर्ण होता है धैर्य और निरंतरता। लेकिन चतुर कभी-कभी धीरज का मजाक उड़ाता था, “तुम तो बहुत धीमे हो! अगर तुम्हें कहीं पहुंचना हो, तो पूरा दिन लग जाएगा!”
एक दिन, धीरज ने चतुर की इस घमंडी बातों से तंग आकर उसे चुनौती दी। उसने कहा, “अगर तुम्हें लगता है कि तुम सबसे तेज़ हो, तो आओ हम एक दौड़ करें। देखते हैं, कौन पहले जीतता है।” चतुर ने हँसते हुए इस चुनौती को तुरंत स्वीकार कर लिया। वह पूरी तरह से आश्वस्त था कि वह इस दौड़ को आसानी से जीत जाएगा। दौड़ की तारीख और समय तय किया गया और सभी जानवर यह देखने के लिए उत्सुक हो गए कि इस दौड़ का विजेता कौन होगा।
दौड़ का दिन आया। जंगल के सारे जानवर इस अद्भुत मुकाबले को देखने के लिए इकट्ठे हुए। दौड़ का रास्ता जंगल के बीचों-बीच से होकर जाता था, जहाँ कई पेड़, फूल, और जानवरों के घर थे। दौड़ शुरू होते ही, चतुर खरगोश अपनी पूरी ताकत से दौड़ पड़ा। वह इतनी तेज़ी से भागा कि कुछ ही क्षणों में धीरज से बहुत आगे निकल गया। उसने मुड़कर देखा और हँसते हुए कहा, “यह तो आसान है। धीरज तो बहुत पीछे है, उसे आने में बहुत समय लगेगा।”
चतुर को अपनी जीत इतनी पक्की लगी कि वह दौड़ के बीच में एक पेड़ के नीचे बैठ गया। वह सोचने लगा, “धीरज तो बहुत पीछे है, क्यों न मैं थोड़ी देर आराम कर लूँ।” पेड़ की छांव में बैठते-बैठते उसे नींद आ गई, और वह गहरी नींद में सो गया।
उधर, धीरज अपनी धीमी लेकिन स्थिर गति से आगे बढ़ता रहा। उसने एक बार भी नहीं रुका। वह जानता था कि वह तेज़ नहीं दौड़ सकता, लेकिन उसने ठान लिया था कि वह बिना रुके अपनी यात्रा पूरी करेगा। जंगल के सारे जानवर उसे देखकर हैरान थे कि वह कितनी शांति से और धैर्य के साथ अपनी मंजिल की ओर बढ़ रहा था।
थोड़ी देर बाद, धीरज चतुर के पास पहुँचा, जो अभी भी पेड़ के नीचे सो रहा था। धीरज ने बिना रुके अपना सफर जारी रखा और धीरे-धीरे, लेकिन निश्चित रूप से, फिनिश लाइन के पास पहुँच गया। अब फिनिश लाइन बस कुछ कदम दूर थी।
तभी चतुर की नींद खुली। उसने घबराकर चारों ओर देखा और देखा कि धीरज लगभग फिनिश लाइन पर पहुँचने वाला था। चतुर जल्दी से उठा और पूरी ताकत से दौड़ने लगा, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। धीरज ने फिनिश लाइन पार कर ली थी, और सभी जानवर तालियाँ बजा रहे थे।
चतुर दौड़ता हुआ वहाँ पहुँचा, लेकिन वह जानता था कि वह हार चुका है। उसने सिर झुका लिया और धीरज के पास जाकर कहा, “मुझे माफ कर दो। मैंने अपनी तेज़ी पर घमंड किया और सोचा कि मैं आसानी से जीत जाऊँगा। लेकिन तुम्हारी मेहनत और निरंतरता ने तुम्हें विजेता बना दिया।”
धीरज मुस्कराते हुए बोला, “कोई बात नहीं, चतुर। हमने एक बहुत महत्वपूर्ण सबक सीखा है – केवल तेज़ दौड़ना ही सब कुछ नहीं होता। निरंतरता और धैर्य से ही हम अपनी मंजिल तक पहुँच सकते हैं। तुम तेज़ हो, लेकिन घमंड के कारण तुमने अपनी जीत को हल्के में लिया। हर कोई अपने तरीके से जीत सकता है, चाहे वह धीमा हो या तेज़, बशर्ते वह मेहनत और धैर्य से काम करे।”
इस दौड़ से जंगल के सारे जानवरों ने भी एक सीख ली। उन्हें समझ में आ गया कि जीतने के लिए सिर्फ तेज़ी की ज़रूरत नहीं होती, बल्कि मेहनत, धैर्य और निरंतरता भी उतने ही महत्वपूर्ण होते हैं। इस कहानी से चतुर ने यह सीखा कि अपनी ताकत पर घमंड करना सही नहीं है और धीरज ने यह साबित किया कि धीरे-धीरे और लगातार चलने से भी मंजिल पाई जा सकती है।
उस दिन के बाद से, चतुर और धीरज अच्छे दोस्त बन गए। चतुर ने अपना घमंड छोड़ दिया और धीरज की मेहनत और धैर्य की तारीफ की। दोनों ने मिलकर जंगल के अन्य जानवरों को भी सिखाया कि सफलता के लिए धैर्य और निरंतरता कितनी महत्वपूर्ण होती है।
सीख: यह कहानी हमें सिखाती है कि केवल तेज़ी से काम करना ही सब कुछ नहीं होता। धैर्य, निरंतरता और मेहनत से भी मंजिल पाई जा सकती है। घमंड से कुछ हासिल नहीं होता, बल्कि सच्ची सफलता उन्हें ही मिलती है जो मेहनत और ईमानदारी से अपना काम करते हैं।