Hindi story for kids-3 :समझदार हाथी और चालाक लोमड़ी
बहुत समय पहले की बात है, एक हरे-भरे जंगल में कई जानवर शांति से रहते थे। उनमें से दो जानवर काफी प्रसिद्ध थे: एक था एक विशाल, समझदार हाथी जिसका नाम ‘मति’ था, और दूसरा था एक चालाक, तेज़ दिमाग वाली लोमड़ी जिसका नाम ‘धूर्त’ था। मति अपने धैर्य, ताकत और सभी जानवरों की मदद करने के लिए जाना जाता था, जबकि धूर्त अपनी चतुराई और चालबाजियों के लिए मशहूर थी।
धूर्त हमेशा किसी न किसी तरह से अपनी चालाकी से फायदा उठाने की कोशिश करती रहती थी। वह जानवरों को धोखा देकर उनके खाने और संसाधनों पर कब्जा कर लेती थी। एक दिन, धूर्त को लगा कि अगर वह किसी बड़े जानवर को हरा दे तो उसकी चालाकी की और भी तारीफ होगी। उसने सोचा, “अगर मैं हाथी मति को चालाकी से हरा दूं, तो पूरे जंगल में मेरी तारीफ होगी और मैं सबसे शक्तिशाली बन जाऊंगी।”
धूर्त ने मति से मिलने की योजना बनाई और उसे चालाकी से प्रभावित करने की कोशिश की। एक दिन, धूर्त मति के पास आई और बोली, “हे मति, आप तो जंगल के सबसे बुद्धिमान और शक्तिशाली जानवर हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि चालाकी भी ताकत से ज़्यादा महत्वपूर्ण होती है? क्या आप मुझसे एक प्रतियोगिता करने के लिए तैयार हैं?”
मति, जो कि शांत और समझदार था, हँसते हुए बोला, “मैं किसी को हरा कर अपनी ताकत साबित करने में विश्वास नहीं रखता, लेकिन अगर तुम चाहती हो तो हम प्रतियोगिता कर सकते हैं। तुम्हारी चालाकी और मेरी ताकत के बीच क्या मुकाबला हो सकता है?”
धूर्त ने एक योजना बनाई और कहा, “हम दोनों एक नदी के किनारे दौड़ करेंगे। नदी के उस पार जाकर हमें वहाँ लगे विशाल पेड़ से फल तोड़ने होंगे। जो पहले फल लेकर वापस आएगा, वही विजेता होगा।”
मति को धूर्त की योजना पर थोड़ा शक हुआ, लेकिन उसने सोचा कि यह सिर्फ एक दौड़ है और इसे खेल भावना के साथ लेना चाहिए। अगले दिन, सारे जानवर उस दौड़ को देखने के लिए इकट्ठे हो गए। नदी के पास दोनों खड़े थे, धूर्त और मति।
जैसे ही दौड़ शुरू हुई, धूर्त तेजी से दौड़ने लगी, लेकिन मति अपनी धीमी चाल में आराम से चलता रहा। धूर्त, अपनी तेज़ी और चालाकी पर गर्व महसूस कर रही थी। नदी के किनारे पहुँचते ही उसने देखा कि वहाँ एक नाव बंधी हुई थी। उसने सोचा, “अगर मैं इस नाव से नदी पार कर लूँ, तो मैं आसानी से जीत जाऊंगी।”
धूर्त ने बिना सोचे-समझे नाव को खोला और नदी पार करने लगी। लेकिन उसने यह नहीं देखा कि नाव काफी पुरानी और कमजोर हो चुकी थी। जैसे ही वह नदी के बीच में पहुँची, नाव डगमगाने लगी और अचानक उसमें छेद हो गया। धूर्त घबराकर चिल्लाने लगी, “मति! मति! मेरी मदद करो! मैं डूब रही हूँ!”
उधर, मति अपनी धीमी चाल से नदी के किनारे पहुँचा और धूर्त की आवाज़ सुनकर तुरंत समझ गया कि उसे मदद की ज़रूरत है। अपनी ताकत और सूझबूझ का इस्तेमाल करते हुए, मति ने अपनी सूंड से धूर्त को नाव से बाहर निकाला और सुरक्षित किनारे पर ले आया।
धूर्त, जो अब पूरी तरह से भीग चुकी थी और अपनी चालाकी में असफल हो चुकी थी, मति के सामने शर्मिंदा खड़ी थी। उसने कहा, “मति, मैं तुमसे माफी मांगती हूँ। मैंने सोचा था कि मैं अपनी चालाकी से तुम्हें हरा दूंगी, लेकिन अब मुझे समझ में आ गया है कि ताकत और बुद्धिमानी के साथ-साथ दयालुता भी कितनी महत्वपूर्ण होती है।”
मति ने धूर्त की ओर देखा और हंसते हुए कहा, “धूर्त, चालाकी बुरी चीज़ नहीं है, लेकिन जब उसका इस्तेमाल दूसरों को नुकसान पहुंचाने के लिए किया जाए, तब वह गलत हो जाती है। हमें अपनी बुद्धिमानी और ताकत का इस्तेमाल दूसरों की मदद के लिए करना चाहिए, न कि उनका मज़ाक उड़ाने या उन्हें धोखा देने के लिए।”
इस घटना के बाद, धूर्त ने अपनी गलतियों से सीख ली और मति के साथ मिलकर जंगल के बाकी जानवरों की मदद करने लगी। उसने यह समझ लिया था कि सच्ची बुद्धिमानी और ताकत तब ही सार्थक होती है जब उसका इस्तेमाल भलाई के लिए किया जाए।
जंगल के सारे जानवरों ने मति और धूर्त की दोस्ती की सराहना की। अब जंगल में कोई भी जानवर एक-दूसरे को धोखा देने या छल-कपट करने के बारे में नहीं सोचता था। मति और धूर्त दोनों मिलकर जंगल को एक शांतिपूर्ण और खुशहाल स्थान बनाने में जुट गए।
सीख: यह कहानी हमें सिखाती है कि चालाकी और बुद्धिमानी का उपयोग हमेशा अच्छे कामों के लिए करना चाहिए। अगर हम दूसरों को नुकसान पहुंचाने के लिए अपनी क्षमताओं का उपयोग करते हैं, तो अंत में हमें ही नुकसान होता है। सच्ची ताकत और बुद्धिमानी का मतलब है दूसरों की मदद करना और उनके साथ दया का व्यवहार करना।